बनारस के Ashok Stambh की वो जादुई दुनिया
नमस्ते दोस्तों, कल्पना करो एक ऐसी जगह जहां हवा में इतिहास की सरसराहट हो, गंगा की लहरें पुरानी कहानियां सुना रही हों, और तुम्हारे कदमों तले हजारों साल पुराना धम्म जाग उठे। मैं हूं अमित, जनजगीर का वो साधारण लड़का जो जिंदगी को घूम-फिरकर जीना पसंद करता है। कुछ ही दिन पहले, नवंबर 2025 में, मैंने अपने यारों भवानी और संतोष को साथ लेकर एक धमाकेदार Varanasi Tour की। नाम रखा ‘बनारस की जादुई सैर’, लेकिन असली हीरा था Ashok Stambh Varanasi – वो अशोक स्तंभ जो ना सिर्फ पत्थर का टुकड़ा है, बल्कि शांति, करुणा और एक राजा की ट्रांसफॉर्मेशन की लिविंग स्टोरी। यार, वो ट्रिप इतनी मजेदार, इमोशनल और सीखने वाली थी कि आज भी दिल भरा-भरा सा लगता है। आओ, चलो साथ घूम आते हैं उन गलियों में, जहां सम्राट अशोक की गूंज आज भी सुनाई देती है। तैयार हो? तो चल पड़े!
Ashok Stambh Varanasi Tour
ट्रेन की सीट पर बैठे-बैठे जब Janjgir से बनारस की ओर निकले, तो लगा जैसे जिंदगी का एक नया चैप्टर खुल रहा हो। सुबह चार बजे स्टेशन पर चाय की चुस्की लेते हुए Varanasi Tour का प्लान बनाया – भवानी ने कहा, “भाई, पहले Ashok Stambh Sarnath history की किताबें चेक कर लीं, लेकिन रियल फील तो जाकर ही आएगा।” संतोष ने चाय का गिलास थपथपाते हुए बोला, “प्लानिंग बाद में, पहले स्टेशन वाली समोसे खा लो।” हाहा, यही तो हमारी ट्रिप का स्टाइल था – थोड़ा हिस्ट्री, थोड़ा हंसी-मजाक। रास्ते भर पुरानी यादें ताजा कीं, वो कॉलेज वाली रायपुर ट्रिप जहां बारिश में भीगते हुए चाय ढूंढी थी।
16 घंटे की जर्नी में उत्साह कम न हुआ, बल्कि बढ़ता गया। बनारस स्टेशन पर उतरते ही गंगा की वो ठंडी हवा चेहरे से टकराई, तो लगा घर लौट आए। अस्सी घाट वाले होटल में चेक-इन किया, बैग फेंका और सीधे घाट पर – रात की आरती देखी, जहां लाइट्स की जगमगाहट ने दिल जीत लिया। यार, Varanasi Tour की ये शुरुआत ही इतनी जादुई थी कि अगले दिन अशोक स्तंभ की तरफ जाने का इंतजार मुश्किल हो गया।
Ashok Stambh Varanasi की शांति भरी दुनिया में कदम
बनारस स्टेशन से ऑटो लिया सारनाथ के लिए। रास्ते में भवानी ने फोन निकाला और गूगल मैप पर चेक किया – “Ashoka Pillar Sarnath Varanasi से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है।” मैंने हंसते हुए कहा, “यार, ये Ashok Stambh Varanasi का वो आइकॉन है, जो भारत का नेशनल एम्ब्लम भी है। लायन कैपिटल देखना मत भूलना।” संतोष ने कहा, “भाई, पहले होटल चेक-इन कर लो, भूख लगी है।” हमारा होटल अस्सी घाट के पास था, लेकिन Varanasi Tour के हिसाब से हमने लोकल ऑटो से सारनाथ की तरफ निकल पड़े। रास्ता ऐसा था – एक तरफ गंगा का किनारा, दूसरी तरफ पुरानी हवेलियां। मन में सवाल घूम रहा था, इतने सालों बाद भी ये जगह इतनी जिंदा क्यों लगती है? जैसे अशोक सम्राट खुद कह रहे हों, “आओ, मेरी कहानी सुनो।”

सारनाथ पहुंचते ही डियर पार्क का गेट दिखा। एंट्री फीस मामूली सी, 40 रुपये प्रति हेड, और अंदर घुसते ही हवा में शांति की लहर दौड़ गई। यार, कल्पना करो – चारों तरफ हरे-भरे पेड़, हिरण घूमते हुए, और बीच में वो अशोक स्तंभ खड़ा। लेकिन भाई, वो स्तंभ अब पूरा नहीं है। ऊपरी हिस्सा, यानी लायन कैपिटल, म्यूजियम में रखा है। हमने पहले पार्क घूमा, जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। संतोष बोला, “अरे, यहां तो धमेक स्तूप भी है। लेकिन Ashoka Pillar Sarnath history पहले सुनाओ अमित।” मैंने कहा, “ठीक है यार, लेकिन चलो पहले चाय पी लें।” पास की एक छोटी सी चाय की दुकान पर बैठे, जहां लोकल गाइड मिल गया। उसने बताया, “ये पिलर तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है। सम्राट अशोक ने बनवाया, कलिंग युद्ध के बाद बौद्ध बन गए तो धर्म प्रचार के लिए ऐसे स्तंभ खड़े किए।”
Varanasi Tour के इस पार्ट में हमने महसूस किया कि सारनाथ सिर्फ एक स्पॉट नहीं, बल्कि पूरी Varanasi Tour का दिल है। यहां की शांति गंगा घाटों की भीड़ से इतना अलग थी। हम तीनों ने पार्क में घंटों बिताए, हिरणों को फीड किया, और फोटोज क्लिक कीं। भवानी ने कहा, “ये Ashok Stambh Varanasi visiting tips के लिए परफेक्ट लोकेशन है।”
सम्राट अशोक और Ashoka Pillar Sarnath History
अब चलो, थोड़ा पीछे चलते हैं। सम्राट अशोक कौन थे? भाई, अगर आपने भी चाणक्य की किताब पढ़ी हो या कोई हिस्ट्री डॉक्यूमेंट्री देखी हो, तो पता होगा। अशोक मौर्य वंश के थे, चंद्रगुप्त मौर्य के पोते। 268 ईसा पूर्व में राजा बने, लेकिन शुरुआत में क्रूर थे। कलिंग युद्ध लड़ा, जहां लाखों लोग मारे गए। उस खूनखराबे को देखकर उन्हें इतना दुख हुआ कि बौद्ध धर्म अपनाया। फिर उन्होंने पूरे साम्राज्य में धम्म का प्रचार किया – यानी नैतिकता, अहिंसा, करुणा। और इसी के तहत ये पिलर्स बनवाए। कुल 20 के आसपास बचे हैं, लेकिन सारनाथ वाला स्पेशल है। क्यों? क्योंकि यहां का लायन कैपिटल भारत का राष्ट्रीय चिन्ह है। विकिपीडिया पर अशोक स्तंभों की पूरी लिस्ट देख लो, वहां डिटेल्स मिल जाएंगी।
Ashoka Pillar Sarnath history को समझने के लिए कल्पना करो – तीसरी शताब्दी में, जब दुनिया में अलेक्जेंडर के बादल छंट रहे थे, भारत में मौर्य साम्राज्य चरम पर था। अशोक ने ये पिलर्स बौद्ध तीर्थस्थलों पर लगवाए, जैसे लुंबिनी जहां बुद्ध का जन्म हुआ, या बोधगया जहां ज्ञान प्राप्ति हुई। सारनाथ तो वो जगह है जहां गौतम बुद्ध ने पांच शिष्यों को पहला उपदेश दिया – धर्मचक्र प्रवर्तन। अशोक ने यहां आकर महसूस किया कि ये जगह कितनी पवित्र है, तो एक चमकदार बलुआ पत्थर का स्तंभ खड़ा कर दिया। ऊंचाई करीब 12 मीटर, वजन 50 टन से ज्यादा। इसे चुनार या मथुरा से लाया गया, सैकड़ों मील घसीटकर। यार, सोचो कितना मेहनत लगी होगी उस टाइम। कोई क्रेन नहीं, कोई मशीन नहीं – सिर्फ इंसानी हिम्मत।
Varanasi Tour के दौरान जब हमने ये हिस्ट्री सुनी, तो लगा जैसे टाइम मशीन में सवार हो गए। गाइड अंकल ने और डिटेल्स बताईं – इन पिलर्स पर एडिक्ट्स उकेरे गए थे, जो अशोक के संदेश थे। ब्राह्मी लिपि में, प्राकृत भाषा। सारनाथ वाले पर स्किज्म एडिक्ट है, जो बौद्ध संघ में फूट ना पड़े इसके लिए। अशोक कहते हैं, “सभी संन्यासी एक रहें।” कितना रेलेवेंट आज भी, जब दुनिया बंटी हुई है। संतोष ने कहा, “भाई, अगर अशोक आज होते तो सोशल मीडिया पर धम्म पोस्ट करते।” हम सब हंस पड़े। लेकिन अंदर से एक सीरियस फीलिंग आई – इतिहास हमें क्या सिखाता है? शांति, दोस्त।
Ashok Stambh Varanasi की आर्किटेक्चर
हम तीनों जब वहां खड़े हुए, तो भवानी ने फोटो लेना शुरू कर दिया। “अमित, पोज दे। Ashok Stambh Varanasi visiting tips के लिए ये परफेक्ट शॉट है।” मैंने हंसकर कहा, “यार, पहले तो बता, ये इतना चमकदार क्यों है?” गाइड अंकल ने समझाया, मौर्य काल की वो खास पॉलिश – जैसे आज के ग्लास जैसी स्मूद। ये पिलर्स की आर्किटेक्चर का कमाल है। नीचे लोटस का बेल शेप, फिर अबाकस जो स्क्वायर है और उस पर जानवर उकेरे गए। सारनाथ वाले में चार शेर पीठ से पीठ जोड़े खड़े हैं, और बीच में धर्म चक्र का व्हील। ये शेर दिशाओं के रक्षक हैं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण। हेलनिस्टिक और पर्शियन इन्फ्लुएंस दिखता है, लेकिन इंडियन टच प्योर। ट्रिपएडवाइजर पर रिव्यूज चेक करो, वहां लोग कहते हैं ये जगह शांतिपूर्ण है, लेकिन कैपिटल म्यूजियम में ही देखना पड़ता है।
भावुक हो गया ना? हां यार, जब मैंने सोचा कि ये लायन कैपिटल 1950 में भारत का स्टेट एम्ब्लम बना, तो गर्व से सीना चौड़ा हो गया। हमारे फ्लैग पर वो 24 स्पोक्स वाला चक्र – अशोक चक्र – यहीं से आया। अशोक का धम्म पॉलिसी थी – जानवरों की रक्षा, कैदियों को छुड़ाना, अफसरों को नैतिक बनाना। इनस्क्रिप्शन्स ब्राह्मी लिपि में हैं, प्राकृत भाषा में। Varanasi Tour के इस हिस्से में हमने महसूस किया कि ये सिर्फ पत्थर नहीं, बल्कि एक लिविंग लेसन है।
अब थोड़ा आर्किटेक्चर पर डीप डाइव। ये पिलर्स मोनोलिथिक हैं – एक ही पत्थर से काटे। शाफ्ट स्मूद, टेपरिंग, बेस पर लोटस। अबाकस पर पैटर्न – हनीसकल, बिड एंड रील। एनिमल कैपिटल्स सिंबॉलिक – लॉयन फॉर पावर। सारनाथ वाला सबसे फेमस, क्योंकि मल्टी-एनिमल। इन्फ्लुएंस? पर्शियन से – वो फ्लूटेड कॉलम्स, लेकिन इंडियन में फ्री स्टैंडिंग। ग्रीक से हेलनिस्टिक टच। लेकिन ओरिजिन इंडियन – ध्वज स्टैंडर्ड्स से। यूट्यूब पर डॉक्यूमेंट्री देखो, कमाल की।
हिस्ट्री में इंटरेस्टिंग फैक्ट – अशोक के एडिक्ट्स दुनिया के पहले इंटरनेशनल कम्युनिकेशन जैसे हैं। जो अफगानिस्तान तक फैले हैं। सारनाथ पर क्वीन एडिक्ट भी है? नहीं, लेकिन स्किज्म एडिक्ट। अशोक ने कहा, संघ में मतभेद ना हो। आज की पॉलिटिक्स में कितना यूजफुल हैं। Varanasi Tour के दौरान ये फैक्ट्स सुनकर हमने डिस्कस किया घंटों – क्या अगर अशोक आज होते, तो दुनिया कैसी होती?
हमारी Varanasi Tour की वो मजेदार और इमोशनल कहानियां: दोस्ती का असली मजा
अब चलो, हमारी Varanasi Tour की वो मजेदार कहानी सुनो। जनजगीर से निकलते वक्त भवानी का बैग भूल गया – अरे, वो जो कैमरा बैग था। स्टेशन पर चिल्लाया, “अमित, रुक! मेरा कैमरा!” मैंने कहा, “यार, फोन से ही मैनेज कर लेंगे। Ashoka Pillar in Varanasi photos के लिए प्रोफेशनल की जरूरत नहीं।” ट्रेन में संतोष ने चिप्स खोलीं, और हमने गेम खेला – कौन सबसे ज्यादा हिस्ट्री फैक्ट्स जानता है। मैंने जीता, क्योंकि मैंने पहले से रिसर्च किया था। बनारस पहुंचकर होटल में चेक-इन के टाइम रिसेप्शनिस्ट ने कहा, “Varanasi Tour के लिए सारनाथ घूमने जा रहे हो? सुबह जल्दी जाओ, भीड़ कम।”
अगली सुबह सारनाथ गए। ऑटो वाला भाई ने कहा, “10 रुपये किलोमीटर, 100 रुपये में पहुंचा दूंगा।” हम सहमत। पार्क में घुसते ही हिरणों ने हमें घूरा, जैसे कह रहे हों, “कौन हो तुम?” हम हंसे। स्तंभ के पास पहुंचे, तो भवानी ने सेल्फी स्टिक निकाली। लेकिन अचानक बारिश शुरू हो गई – हल्की सी। संतोष चिल्लाया, “अरे, भागो! मेरा नया शर्ट खराब हो जाएगा।” हम तीनों भागे, लेकिन रास्ते में एक बेंच पर रुक गए। गीले होकर हंसे, चाय मंगाई। वहां एक बुजुर्ग मिले, जो लोकल थे। उन्होंने कहा, “बेटा, ये जगह सिर्फ पत्थर नहीं, बुद्ध की याद है। अशोक ने यहां धम्म विजय की।” उनकी बातें सुनकर इमोशनल हो गए। भवानी ने फोटो लिया बुजुर्ग का, और कहा, “अंकल, ये Ashok Stambh Varanasi emotional stories के लिए परफेक्ट।”

बारिश रुकी, तो म्यूजियम गए। वहां लायन कैपिटल देखा – वाह! चार शेर, इतने रीयलिस्टिक। गाइड ने बताया, 1904 में एक्सकेवेट हुआ, और अब प्रोटेक्टेड है। एंट्री 5 रुपये, लेकिन वर्थ इट। संतोष ने कहा, “भाई, ये देखकर लगता है जैसे अशोक खुद खड़े हैं।” हमने घंटों घूमा – मुलगंध कुटी विहार देखा, जहां बुद्ध ठहरे थे। लंच के टाइम लोकल ढाबे पर बने – कचौड़ी और जलेबी। भवानी ने शूट किया वीडियो, “Visiting Ashoka Pillar Sarnath with friends – must do in Varanasi Tour.”
जब हम स्तंभ के पास बैठे, तो मैंने सोचा अपने अब्बा के बारे में। वो हमेशा कहते थे, “बेटा, इतिहास से सीखो। अशोक जैसे बनो – क्रूर से करुणामय।” आंखें नम हो गईं। भवानी ने कंधा थपथपाया, “अमित, सब ठीक। ये जगह ही तो यही सिखाती है।” संतोष ने मजाक किया, “हां भाई, लेकिन अगली बार Varanasi Tour में इमोशनल ना होना, पार्टी ज्यादा।” हंस पड़े हम। यार, दोस्ती का यही मजा है – हंसना, रोना, और साथ घूमना।
Sarnath कैसे पहुंचें? (असली Local वाला गाइड)
देख भाई, सारनाथ जाना रॉकेट साइंस नहीं है — बस थोड़ा सा स्मार्ट बनना पड़ता है। बनारस की गलियाँ गूगल मैप से नहीं, लोकल दिमाग से चलती हैं। मैंने खुद टेस्ट किया है, तो एकदम सटीक तरीका बता रहा हूँ:
1. ट्रेन से आ रहे हो तो?
Varanasi Cantt (BSB) और Banaras Station, दोनों से Sarnath लगभग 10–12 किमी ही है।
ये चार तरीके बेस्ट हैं:
- ऑटो रिक्शा – 150–200 रुपये में सीधे सारनाथ छोड़ देगा। अगर बोलो तो घाट + सारनाथ + वापसी भी 500–600 में करवा देता है।
- शेयर ऑटो / ई-रिक्शा – सबसे बजट फ्रेंडली। स्टेशन के बाहर मिल जाएगा। 30–40 रुपये प्रति व्यक्ति।
- Ola / Uber – चलती है, पर गलियों में लोकेशन पकड़ने में टाइम लगता है। अगर आपके पास लगेज है तो ओला लेना आसान।
- City Bus – स्टेशन के बाहर से सारनाथ रूट की बस मिल जाती है, 20–25 रुपये। पर भीड़ थोड़ी ज्यादा होती है।
2. हवाई जहाज से आ रहे हो तो?
Lal Bahadur Shastri Airport (Varanasi Airport) से Sarnath लगभग 25–28 किमी है।
- Cab – 600–900 रुपये।
- Prepaid Taxi – एयरपोर्ट से ही मिल जाएगी।
- Auto – 350–450 तक में आ जाएगा, bargaining चालू कर देना।
अगर सुबह-सुबह जा रहे हो तो एयरपोर्ट से सड़के खाली मिलती हैं – 40-45 मिनट में पहुँच जाओगे।
3. बनारस के घाट या होटल से Sarnath कैसे पहुंचे?
- गंगा किनारे वाले घाट (Dashashwamedh, Assi, Manikarnika)
Auto सीधे ले लो – 200–250 रुपये। - Sigra, Lanka, BHU side
ई-रिक्शा – 100–120 रुपये में पहुंचा देगा। - Godowlia Crossing
यहां से शेयर ऑटो सबसे आसानी से मिलता है – 20–30 रुपये।
और हां, गंगा आरती के बाद भी चाहें तो सारनाथ जा सकते हो, पर ठंड में रात में मजा आधा रह जाता है। सुबह का vibe ही अलग है।
4. खुद की बाइक/स्कूटी है तो?
तो भाई मजा ही मजा।
- Banaras Cantt – Sarnath: 25–30 मिनट
- BHU – Sarnath: 35–40 मिनट
- Parking सब जगह मिल जाती है, 10–20 रुपये में।
Roads बिल्कुल smooth हैं – बस ट्रैफिक के टाइम (10 AM, 6 PM) में थोड़ी भीड़ रहती है।
5. कौन सा रूट सबसे बेस्ट?
अगर Cantt से निकल रहे हो तो:
Cantt – Lahurabir – Pandeypur – Sarnath Road – Dhamek Stupa Gate
इस रूट पर ट्रैफिक कम, सड़क सीधी और मैप भी गड़बड़ नहीं करता।
Ashoka Stambh Sarnath कब जाएं
दोस्त, बनारस की ट्रिप प्लान कर रहे हो तो सबसे बड़ा सवाल यही होता है – “भाई, सारनाथ और अशोक स्तंभ कब जाएं कि भीड़ ना हो, मौसम साथ दे, और फोटो भी इंस्टा लेवल आएं?” मैंने खुद नवंबर 2025 में जाकर चेक किया है, तो कान खोलकर सुनो:
1. बेस्ट महीने (परफेक्ट मौसम वाला टाइम)
अक्टूबर अंत से मार्च तक – ये इलाका जन्नत बन जाता है।
- नवंबर-दिसंबर-जनवरी – सबसे टॉप। ठंडक अच्छी, सुबह हल्की धुंध, फोटो में गोल्डन लाइट। हम नवंबर में गए थे, दिन में 22-24 डिग्री, रात में स्वेटर निकल आया।
- फरवरी-मार्च – हल्की गर्मी शुरू, लेकिन फिर भी मजा आता है, और होली के आसपास गए तो बनारसी रंग भी मिल जाएगा।
2. बिल्कुल अवॉइड करो ये महीने
- अप्रैल से जून – भाई, 45 डिग्री में पत्थर भी पसीना छोड़ते हैं। हमने एक बार गलती से मई में प्लान बनाया था, कैंसिल कर दिया।
- जुलाई-सितंबर – बारिश तो अच्छी, लेकिन कीचड़, उमस और मच्छर तिगुने। सारनाथ के रास्ते पानी भर जाते हैं।
3. हफ्ते में बेस्ट दिन
- मंगलवार से शुक्रवार – सबसे शांत।
- वीकेंड (शनिवार-रविवार) – लोकल और दिल्ली वाले टूरिस्ट ज्यादा आते हैं, थोड़ी भीड़ हो जाती है।
- सोमवार – म्यूजियम बंद रहता है, तो अगर लायन कैपिटल देखना है तो सोमवार छोड़ दो।
4. दिन का बेस्ट टाइम
- सुबह 6 से 9 बजे → गोल्डन ऑवर। हिरण घूमते हैं, कोहरा हल्का सा, फोटो में जादू आ जाता है। हम 6:30 बजे पहुंचे थे, पूरा पार्क हम तीनों का लग रहा था।
- शाम 4 से 6 बजे → सनसेट टाइम, चौखंडी स्तूप पर लाइट कमाल की पड़ती है।
- दोपहर 12 से 3 बजे → सबसे खराब, धूप सीधी, फोटो ओवरएक्सपोज्ड, और थकान दोगुनी।
5. खास मौके जब और भी मजा आता है
- बुद्ध पूर्णिमा (मई में) – पूरा सारनाथ सज जाता है, लाइट्स, प्रेयर, कैंडल मार्च – लेकिन भीड़ ट्रिपल।
- कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर) – देव दीपावली के आसपास अगर जाओ तो पहले सारनाथ सुबह घूम लो, शाम को गंगा घाट पर दीपदान। हमारा प्लान ऐसा ही था, जिंदगी भर याद रहेगा।
- 26 जनवरी या 15 अगस्त – तिरंगा झंडा लहराता है अशोक स्तंभ के पास, गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है।
मेरा परफेक्ट रेकमेंडेशन
अगर आप मेरी तरह आराम से, फोटो खींचते हुए, चाय पीते हुए घूमना चाहते हो तो नवंबर के मिड से जनवरी तक, किसी वीकडे पर सुबह 6:30 बजे पहुंचो। हमने 18 नवंबर को ऐसे ही किया था – मौसम 10/10, भीड़ 2/10, मजा 100/10।
तो भाई, कैलेंडर निकालो, छुट्टी मार्क करो और बस निकल पड़ो। मौसम गलत हुआ तो सारी मस्ती आधी रह जाएगी। सही टाइम पर गए तो अशोक स्तंभ खुद आपसे बात करने लगेगा!
किस महीने में जा रहे हो, कमेंट में बता देना, मैं और टिप्स दूंगा।अगर हिस्ट्री लवर हो, तो गाइड हायर करो – 200 रुपये में मिल जाएगा। इंडिया टूरिज्म की ऑफिशियल साइट पर चेक करो डिटेल्स, वहां मैप्स और टिप्स हैं। फोटोग्राफी फ्री है, लेकिन फ्लैश नो। पास में धमेक स्तूप और चेन्ना कोट मंदिर भी घूम लो। गाइड लेने से पहले ये जरूर देख लेना-
Tour Guide Hire Karne ki 5 Bhool? [मेरा 140+ Trips का Experience]
Ashok Stambh Sarnath के आसपास घूमने लायक 7 कमाल की जगहें – एक दिन में कवर कर लो, पैदल ही!
यार, सारनाथ पहुंचकर सिर्फ अशोक स्तंभ देखकर वापस मत आ जाना, वो तो बस शुरुआत है। पूरा इलाका एक खुला बौद्ध म्यूजियम है। हम तीनों ने सुबह 8 बजे पार्क में एंट्री ली और दोपहर 2 बजे तक आराम से ये सारी जगहें कवर कर लीं। सब एक-दूसरे से 5-10 मिनट पैदल दूरी पर हैं। चलो, लिस्ट देता हूं:
- धमेक स्तूप (Dhamek Stupa) – अशोक स्तंभ से मुश्किल से 300 मीटर। यहीं पर गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। 34 मीटर ऊंचा, गोलाकार, और दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी। सुबह की धूप में ये चमकता है जैसे सोना। भवानी ने यहां 50 फोटो खींच डाले।
- चौखंडी स्तूप (Chaukhandi Stupa) – मुख्य गेट से बाहर निकलते ही बायीं तरफ। थोड़ा दूर है (1 किमी), लेकिन रिक्शा वाले 20 रुपये में छोड़ देते हैं। अशोक के टाइम का है, बाद में मुगलों ने ऊपर ऑक्टागोनल टावर बनवाया। सनसेट यहां से कमाल का दिखता है।
- मूलगंध कुटी विहार (Mulagandha Kuti Vihar) – ये वो जगह है जहां बुद्ध बारिश के मौसम में ठहरते थे। आज यहां एक शानदार मंदिर है जिसे 1931 में महाबोधि सोसाइटी ने बनवाया। अंदर बुद्ध की सोने वाली मूर्ति और दीवारों पर जापानी पेंटिंग्स हैं। शांति इतनी कि पिन गिरने की आवाज सुनाई दे। हम यहां 20 मिनट बैठे रहे, कुछ बोले तक नहीं।
- सारनाथ म्यूजियम (Archaeological Museum Sarnath) – लायन कैपिटल यहीं रखा है भाई! अशोक स्तंभ का असली टॉप वाला हिस्सा। टिकट सिर्फ 5 रुपये, लेकिन देखकर लगता है करोड़ों का है। म्यूजियम पुराना है, AC नहीं, पर कलेक्शन वर्ल्ड क्लास। फोटोग्राफी अंदर अलाउड नहीं, पर बाहर से फोटो खींच लो।
- थाई मंदिर और गार्डेन (Thai Temple) – रंग-बिरंगा, लाल-सोने का। बिल्कुल थाईलैंड जैसा लगता है। अंदर बैठकर 10 मिनट मेडिटेशन कर लो, फ्री है। बगीचा भी खूबसूरत, बच्चों को बहुत पसंद आता है।
- जापानी मंदिर (Japanese Temple) – थाई मंदिर के ठीक बगल में। शांत, साफ-सुथरा, और लकड़ी का काम कमाल। यहां बुद्ध की खड़ी हुई मूर्ति है। पास में एक बोधि वृक्ष भी है, जो बोधगया वाले पेड़ की शाख से उगाया गया है।
- तिब्बती मंदिर और यूनिवर्सिटी (Tibetan Temple & Institute) – थोड़ा और आगे, लेकिन पैदल 15 मिनट। प्रेयर व्हील घुमाओ, मंत्र सुनो, और अगर लंच टाइम हो तो तिब्बती थुकपा-मोमोज खा लो – स्वाद भूल नहीं पाओगे।
हमारा रूट था → अशोक स्तंभ → धमेक स्तूप → मूलगंध कुटी → म्यूजियम → थाई-जापानी मंदिर → लंच → चौखंडी सनसेट पॉइंट।
टोटल खर्चा तीन लोगों का: 300 रुपये (रिक्शा + एंट्री + पानी + मोमोज)।
तो भाई, सारनाथ को कम से कम आधा दिन तो दो पूरा। एक जगह से दूसरी जगह पैदल चलते जाना, हवा में घंट बजते रहते हैं, हिरण इधर-उधर घूमते हैं – लगता है जैसे टाइम मशीन में चले गए हों। जाओ, घूमो, और फिर मुझे बताना कौन सी जगह सबसे ज्यादा दिल को छू गई!
Varanasi Tour में Ashok Stambh Sarnath घूमने के लिए देसी ट्रैवल टिप्स
यार, अगर आप भी मेरी तरह पहली बार या दोस्तों-फैमिली के साथ Varanasi Tour प्लान कर रहे हो और Ashok Stambh Sarnath को मिस नहीं करना चाहते, तो ये टिप्स कान खोलकर सुन लो, मैंने खुद आजमाए हैं:
- बेस्ट टाइम – अक्टूबर से मार्च तक। दिसंबर-जनवरी में तो मजा दोगुना, ठंडक अच्छी और धूप भी मीठी। गर्मी में (अप्रैल-जून) तो पसीना ही इतिहास लिख देगा।
- कितने बजे पहुंचो – सुबह 6 से 8 बजे के बीच। सनराइज के टाइम डियर पार्क में हिरण घूमते दिखते हैं, भीड़ नाममात्र, और फोटो भी कमाल की आती हैं। दोपहर में तो सैलानी ग्रुप आ जाते हैं।
- कैसे पहुंचो – वाराणसी कैंट या बनारस स्टेशन से सारनाथ सिर्फ 10-12 किमी। ऑटो वाले 150-200 में पूरा दिन के लिए मान जाते हैं (घाट + सारनाथ + वापसी)। अगर बजट टाइट है तो ई-रिक्शा शेयर कर लो, 30-40 रुपये पर हेड। Ola-Uber भी चलता है, लेकिन गलियों में ऑटो ही किंग है।
- एंट्री और टिकट – डियर पार्क (सारनाथ) की टिकट 40 रुपये (इंडियन), म्यूजियम अलग से 5 रुपये। सोमवार को म्यूजियम बंद रहता है, ध्यान रखना। कैश और UPI दोनों चलते हैं।
- क्या लेकर जाओ – पानी की बोतल, कैप, सनग्लासेस, कम्फर्टेबल चप्प्पल/शूज (काफी चलना पड़ता है), और पावर बैंक। बंदर बहुत हैं, चिप्स-बिस्किट जेब में मत रखना, छीन लेते हैं।
- गाइड चाहिए या नहीं – अगर हिस्ट्री में रुचि है तो 200-300 रुपये में लोकल गाइड ले लो, 45 मिनट में सारी कहानी सुना देगा। नहीं तो ऑडियो गाइड भी है (अंग्रेजी-हिंदी)। हम तीनों ने गाइड लिया था, मजा दोगुना हो गया।
- फोटोग्राफी – पूरी तरह फ्री, ट्राइपॉड-सेल्फी स्टिक चलेगी, लेकिन ड्रोन बिल्कुल नो। म्यूजियम के अंदर फ्लैश बंद रखना।
- खाना-पीना – पार्क के बाहर ढेर सारे ढाबे हैं। बनारसी कचौड़ी, जलेबी, लस्सी जरूर ट्राय करना। हमने “पहलवान की मशहूर लस्सी” पी थी, भाई स्वर्ग। वेज ही मिलेगा ज्यादातर, नॉन-वेज मत ढूंढना वहां।
- पास में और क्या देखो – धमेक स्तूप (5 मिनट पैदल), मुलगंध कुटी विहार, थाई मंदिर, जापानी मंदिर – सब एक ही कंपाउंड में। 3-4 घंटे आराम से लगा दो।
- वापसी का प्लान – दोपहर 1-2 बजे तक निकल लो, ताकि शाम को गंगा आरती के लिए दशाश्वमेध घाट पहुंच सको। हम लोग ऐसे ही किए थे, परफेक्ट टाइमिंग।
- बच्चों या बुजुर्गों के साथ जा रहे हो तो – व्हीलचेयर रास्ता है, लेकिन थोड़ा ऊबड़-खाबड़। स्टॉलर ले जा सकते हो। छाया कम है, इसलिए छाता या टोपी जरूरी।
- बजट – तीन लोग मिलकर सारनाथ का पूरा खर्चा (ट्रांसपोर्ट + एंट्री + गाइड + खाना) 1200-1500 रुपये में हो गया था। सस्ता और वर्थ इट।
बस इतना ध्यान रखोगे तो आपका Ashoka Pillar Sarnath वाला दिन यादगार बन जाएगा। मैं तो कहता हूं, एक बार जाना बनता है भाई, वो शांति, वो हिस्ट्री, वो दोस्तों संग मस्ती – सब मिलेगा एक साथ। जाओ, घूम आओ, फिर मुझे कमेंट में बताना कैसा लगा!
Ashok Stambh के आसपास की जगह
नजदीकी जगहें? धमेक स्तूप – 5 मिनट वॉक। बौद्ध म्यूजियम। फिर वाराणसी वापस – काशी विश्वनाथ, दशाश्वमेध घाट। Varanasi Tour के दौरान हमने ये सब कवर किया। सुबह अशोक स्तंभ, दोपहर में स्तूप, शाम को आरती। थकान तो हुई, लेकिन एनर्जी डबल हो गई। अगर आप सोलो ट्रैवलर हो, तो अकेले घूमो – शांति मिलेगी। लेकिन फ्रेंड्स संग जैसा हमारा, वो मजा अलग लेवल का है।
Varanasi Tour में फूड टिप – सारनाथ के पास बंगाली स्वीट्स ट्राय करो। हमने रसगुल्ला खाया, कमाल का लगा। और हां, लोकल मार्केट से सॉवेनिर लाना मत भूलना – छोटा सा लायन कैपिटल की रेप्लिका।
Ashok Stambh Varanasi क्यों है खूबसूरत भारत का जेवर
दोस्तों, अगर आप खूबसूरत भारत के लवर हो, तो Varanasi Tour के दौरान Ashok Stambh Varanasi जरूर जाओ। खासकर फ्रेंड्स संग – क्योंकि अकेले तो मजा आधा। ये जगह ना सिर्फ हिस्ट्री है, बल्कि इंस्पिरेशन भी। अशोक की तरह, हम भी शांति चुनें। कमेंट में बताओ, तुम्हारी फेवरेट Varanasi Tour स्पॉट कौन सी? शेयर करो, लाइक करो, और नेक्स्ट ट्रिप प्लान करो। जय गंगा मैया!
Ashoka Stambh Sarnath और Varanasi Tour को लेकर सबसे ज्यादा पूछे जाने वाले सवाल
प्रश्न 1. सारनाथ सिर्फ अशोक स्तंभ के लिए ही फेमस है क्या?
नहीं यार, अशोक स्तंभ तो बस चेरी ऑन द केक है। असली बात है – यही वो जगह है जहां गौतम बुद्ध ने पहली बार उपदेश दिया था। धमेक स्तूप, मूलगंध कुटी, थाई-जापानी मंदिर सब एक ही इलाके में हैं। 4-5 घंटे आराम से लग जाते हैं।
प्रश्न 2. लायन कैपिटल (चार शेर वाला) कहां देखने मिलेगा? बाहर लगा है क्या?
नहीं भाई, 100 साल से ज्यादा हो गए बाहर नहीं है। पूरा ऊपरी हिस्सा Archaeological Museum Sarnath में सुरक्षित रखा है। बाहर सिर्फ निचला खंभा दिखता है। म्यूजियम का टिकट 5 रुपये ही है, जरूर जाना।
प्रश्न 3. बच्चों और बुजुर्गों के साथ जा सकते हैं?
बिल्कुल! रास्ते पक्के हैं, व्हीलचेयर भी जा सकती है। हिरण देखकर बच्चे खुश हो जाते हैं। बस गर्मी में मत ले जाना और सुबह जल्दी निकलना।
प्रश्न 4. सारनाथ में खाना मिलेगा या बाहर से ले जाना पड़ेगा?
बाहर गेट पर ढेर सारे ढाबे हैं – कचौड़ी, जलेबी, छोले-भटूरे, लस्सी सब मिलेगा। अंदर पार्क में सिर्फ पानी और बिस्किट की दुकान है। हमने बाहर ही कचौड़ी खाई थी, 30 रुपये प्लेट।
प्रश्न 5. एक दिन में सारनाथ + गंगा आरती + काशी विश्वनाथ हो पाएगा?
हां बिल्कुल। हमने यही किया था:
सुबह 6:30 सारनाथ पहुंचे → 12 बजे तक घूम लिया → 1 बजे लंच → 3 बजे काशी विश्वनाथ लाइन → 6 बजे मणिकर्णिका → 7 बजे दशाश्वमेध घाट आरती। थोड़ा टाइट लेकिन हो जाता है।
प्रश्न 6. ड्रोन उड़ा सकते हैं क्या?
नहीं भाई, आर्कियोलॉजिकल साइट है, सख्त मना है। हमने ट्राई किया था, सिक्योरिटी वाले ने तुरंत रोका।
प्रश्न 7. सारनाथ में रुकने की जरूरत है या वाराणसी से ही दिन में आ-जा सकते हैं?
99% लोग वाराणसी से ही आ-जा सकते हैं। अस्सी, लंका, गोदौलिया कहीं भी हो – 30-40 मिनट का रास्ता। रुकना सिर्फ तभी अगर 4-5 दिन का प्लान हो।
प्रश्न 8. कितना बजट रखें प्रति व्यक्ति (सारनाथ का सिर्फ)?
- ट्रांसपोर्ट (दो तरफ) – 150 रुपये
- एंट्री – 45 रुपये
- गाइड (ऑप्शनल) – 100 रुपये
- खाना-पानी – 150 रुपये
टोटल 400–500 रुपये में आराम से हो जाएगा।
प्रश्न 9. म्यूजियम सोमवार को बंद रहता है ना?
हां, Archaeological Museum Sarnath हर सोमवार बंद रहता है। बाकी सारे मंदिर-स्तूप खुले रहते हैं।
प्रश्न 10. बारिश में जाना ठीक रहेगा?
अगर हल्की फुहार हो तो बहुत मजा आता है, लेकिन तेज बारिश में रास्ते कीचड़ हो जाते हैं और म्यूजियम बंद हो सकता है। हम नवंबर में गए थे, परफेक्ट था।
कोई और सवाल हो तो कमेंट में पूछ लेना, मैं तुरंत जवाब दूंगा। घूमकर आओ, और फिर बताना – वो चार शेरों ने तुम्हें भी सलाम किया या नहीं!





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