राष्ट्रपति भवन | राष्ट्रपति कहाँ रहता हैं | राष्ट्रपति का आवास
राष्ट्रपति भवन | राष्ट्रपति कहाँ रहता हैं | राष्ट्रपति का आवास
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के राष्ट्रपति का आवास, राष्ट्रपति भवन, भारत की शक्ति, और इसकी लोकतांत्रिक परंपराओं और पंथनिरपेक्ष स्वरूप का प्रतीक है।
भारत के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास, सिर्फ एक भवन ही नही है बल्कि भारतीय राजनीतिक परंपराओं और संस्कृति को समेटा हुआ दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्रपति भवन है। जो भारत के राजधानी नई दिल्ली के हृदय क्षेत्र में स्थित है।
राष्ट्रपति भवन का निर्माण
राष्ट्रपति भवन वास्तुकारिता की असाधारण कल्पनाशील और दक्ष वास्तुकार सर एडविन लुट्येन्स और हरबर बेकर ने किया था। सर लुट्येन्स ने ही इस अंग्रेजी के एच आकार वाले भवन की संकल्पना की थी जो 330 एकड़ संपदा पर पांच एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। इस भवन की कुल चार मंजिलों पर 340 कमरे हैं, जो 2.5 किलोमीटर गलियारों और 190 एकड़ उद्यान क्षेत्र में फैले हैं।
हजारों श्रमिकों के उत्कृष्ट कृति से 1929 में इस भव्य भवन को आजादी के पहले मूल रूप से, भारत के वायसराय के आवास के रूप में निर्मित, किया गया था। जब भारत एक स्वतंत्र देश बना तो वायसराय हाऊस का रूपांतरण वर्तमान भारत के राष्ट्रपति भवन के तौर पर किया गया।
राष्ट्रपति भवन न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का दर्शक रहा है, बल्कि यह भारत के राजनीतिज्ञ स्वरूप होने का भी साक्षी है। लार्ड माउंटबेटन ने 1947 में राष्ट्रपति भवन के केंद्रीय गुंबद के नीचे प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को शपथ दिलाई थी। और सी. राजगोपालाचारी, प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल इस भवन में रहने वाले प्रथम भारतीय थे। उसके बाद 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपति भवन को अपना आवास बनाया।
राष्ट्रपति भवन की स्थापत्य कला
यहां के म्यूजियम मुगल उद्यान की गुलाब वाटिका में अनेक प्रकार के गुलाब लगे हैं। इस भवन की खास बात है कि इस भवन के निर्माण में लोहे का नगण्य प्रयोग हुआ है।
इमारत के ऊपर भारतीय स्थापत्यकला का एक अभिन्न अंग है छोटे गुम्बदनुमा ढांचे – छतरी। इमारत में विभिन्न भारतीय डिज़ाइन डाले और जोड़े गये। इनमें ढेरों गोलाकार परात/कुण्ड रूपी घेरे हैं, जो कि भवन के ऊपर लगे हैं और जिनमें पानी के फौव्वारे भी लगे हैं, वे भारतीय स्थापत्य के अभिन्न अंग हैं। यहां परंपरागत बारतीय छज्जे भी हैं, जो कि आठ फीट दीवार से बाहर को निकले हुए हैं और नीचे पुष्पाकृति से सम्पन्न हैं।
लूट्यन्स ने कई भारतीय शैली के नमूनों को उपयुक्त स्थानों पर प्रयुक्त किया है, जो कि काफी प्रभावशाली हैं। इनमें से कुछ हैं, बाग में बने नाग, स्तंभों पर बने सजे धजे हाथी और छोटे खम्भों पर लगे बैठे हुए शेर। ब्रिटिष शिल्पकार चार्ल्स सार्जियेन्ट जैगर, जो कि अपने बनाये कई युद्ध स्मारकों के लिये जाने जाते हैं, जिसने बाहरी दीवारों पर बने हाथियों की सजावट की थी।
भवन के ठीक सामने से एक मार्ग नारंगी बदरपुर बजरी से ढंका हुआ सीधा लोहे के मुख्य द्वार रूपी फाटक तक जाता है, जो कि उस फाटक से होता हुआ, दोनो सचिवालयों, नॉर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक के बीच से हो कर लाल दीवारों के बीच से नीचे उतरता है और विजय चौक से होता हुआ, राजपथ कहलाता है। यह मार्ग इंडिया गेट तक जाता है। इस रास्ते के भवन से फाटक की दूरी के ठीक बीचो बीच स्थित है एक पत्थर का गुलाबी और लाल स्तंभ, जो काफी ऊंचा है और उसपर जयपुर के तत्कालीन महाराजा द्वारा भेजा गया एक चांदी का शुबकामना प्रतीक लगा है| इसी कारण इसे जयपुर स्तंब कहा जाता है|
मुगल गार्डन
राष्ट्रपति भवन के पीछे मुगल गार्डन अपने किस्म का अकेला ऐसा उद्यान है, जहां विश्वभर के रंग-बिरंगे फूलों की छटा देखने को मिलती है। यहां विविध प्रकार के फूलों की गजब की बहार है। अकेले गुलाब की ही 250 से भी अधिक किस्में हैं। मुगल गार्डन की परिकल्पना लेडी हार्डिंग की थी।
साम्राज्यवादी शासन और शक्ति के प्रतीक से बदलकर, आज यह भारतीय लोकतंत्र और इसकी पंथनिरपेक्षता, बहुलवाद और समावेशी संस्कृति का प्रतीक है। तभी तो भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति, श्री आर. वेंकटरमण ने कहा है कि ‘प्रकृति और मनुष्य, चट्टान और वास्तुकला को जितने शानदार ढंग से राष्ट्रपति भवन की उत्कृष्ट बनावट में सम्मिश्रित किया गया है उतना शायद किसी और कार्य में नहीं किया गया है।’
भारत के राष्ट्रपति भवन के बारे में और अधिक जानकारी के लिए ये वीडियो देखें।