अक्षयवट प्रयागराज : आस्था, इतिहास और आध्यात्मिकता का अमर प्रतीक
अक्षयवट, प्रयागराज के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का एक पवित्र स्थल है। यह एक प्राचीन बरगद का पेड़ है, जिसे अमर और अक्षय माना जाता है। इसे त्रिवेणी संगम के पास स्थित इलाहाबाद किले के अंदर देखा जा सकता है।
हिन्दुओं के अलावा जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था। जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है।
अक्षयवट का महत्व:
- पौराणिक मान्यता: ऐसा कहा जाता है कि यह वही पेड़ है जिसके नीचे साधु-संत मोक्ष प्राप्ति के लिए ध्यान लगाते थे। मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस पेड़ को अमरता का वरदान दिया था।
- धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में इसे पवित्र माना गया है। त्रिवेणी संगम स्नान के बाद अक्षयवट के दर्शन करना शुभ माना जाता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: मुगल बादशाह अकबर ने जब इलाहाबाद किला बनवाया, तो अक्षयवट को किले के अंदर सम्मिलित कर दिया। लंबे समय तक यह पेड़ आम जनता के लिए बंद था, लेकिन अब इसे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया है।
अक्षयवट दर्शन:
- अक्षयवट देखने के लिए प्रयागराज किले के अंदर जाना पड़ता है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसे संरक्षित किया गया है।
- कुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं।
यात्रा के टिप्स:
- किले के अंदर सुरक्षा जांच के बाद प्रवेश मिलता है।
- संगम स्नान और अक्षयवट दर्शन का संयोजन एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव देता है।
वाराणसी और गया में भी ऐसे वट वृक्ष हैं जिन्हें अक्षय वट मान कर पूजा जाता है। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वटवृक्ष है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता उपदेश के उपदेश का साक्षी है। सोरों शूकरक्षेत्र में वाराहपौराणिक पवित्र गृद्धवट है, जहाँ पृथ्वी-वाराह सम्वाद हुआ था।
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अक्षयवट केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
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