ज्योतिर्लिंग कैसे बना? 12 ज्योतिर्लिंग ही क्यों प्रसिद्ध है?
12 ज्योतिर्लिंग ही क्यों प्रसिद्ध है? कैसे बना ये 12 ज्योतिर्लिंग, क्या है 12 ज्योतिर्लिंग बनने की कथा।
क्यों 12 ज्योतिर्लिंग ही पूरी दुनिया मे प्रसिद्ध है? समान्य शिवलिंग से क्यों अलग है ये ज्योतिर्लिंग? क्या है इन, खास महत्व वाले, पवित्र ज्योतिर्लिंग बनने की कथा। नमस्कार स्वागत है आप सभी का, खूबसूरत भारत मे, आज हम बात करेंगे ज्योतिर्लिंग से जुड़े इन खास सवालों के बारे में।
देवो के देव महादेव का स्वरूप, जिसके दर्शन मात्र से जीवन पाँप मुक्त हो जाये, जिसका निर्माण स्वयं शिव से हुआ हो, ऐसा पवित्र ज्योतिर्लिंग जिसके बारे में पुराणों में कहा गया है कि जब तक महादेव के इन 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन नहीं कर लेते, तब तक आपका आध्यात्मिक जीवन पूर्ण नहीं हो सकता।
क्या है ज्योतिर्लिंग और ये कैसे बना?
ज्योतिर्लिंग अर्थात एक ऐसा व्यापक प्रकाश, जहाँ पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए, और ज्योति रूप में स्थापित हैं। शिव पुराण के अनुसार उस समय अंतरिक्ष से ज्योति पिंड के रूप में पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। ऐसे अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। हजारों पिंडों में से प्रमुख 12 पिंड को ही ज्योतिर्लिंग में शामिल किया गया। लेकिन कुछ ऐसे भी ज्योतिर्लिंग हैं जिनका निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया है। शिव पुराण और नंदी उपपुराण में, भगवान शिव ने कहा है, मैं हमेशा हर जगह मौजूद हूं लेकिन विशेष रूप से 12 रूपों और स्थानों में ज्योतिर्लिंग के रूप में।
ज्योतिर्लिंग कोई सामान्य शिवलिंग नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इन 12 जगहों पर भोलेनाथ ने स्वयं दर्शन दिए थे, और ये ज्योतिर्लिंग उत्पन्न हुए। इसलिए ये जानना भी जरूरी है कि वो 12 ज्योतिर्लिंग कंहा कंहा है? और कैसे इनकी स्थापना हुई। तो आइए देखते है, इन 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में विस्तार से।
12 ज्योतिर्लिंग कहाँ कहाँ है देखे विस्तार से…
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
भारत के पश्चिमी छोर पर, गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जिसे सभी ज्योतिर्लिंगो में सवर्प्रथम माना जाता है। ऋग्वेद के अनुसार खूबसूरती से भरा इस अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध, सोमनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। और कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने यही पर देहत्याग किया था।
पश्चिमी भारत में अरब सागर के तट पर स्थित, यह मंदिर अनादि काल से लाखों हिंदुओं के लिए, प्रेरणा का एक बारहमासी स्रोत है। समुद्र की लहरों से शुशोभित सोमनाथ मंदिर, दुनिया का ऐसा प्रसिद्ध, धार्मिक और खूबसूरत पर्यटन स्थल है, जहां रात में रोज एक घंटा, साउंड और लाइट शो चलता है, जिसमे इस पवित्र मंदिर का इतिहास, सचित्र बताया जाता है।
हिरण, कपिला और सरस्वती जैसे, नदियों के महासंगम के किनारे स्थित, सोमनाथ के बारे में, कहा जाता है कि, प्राचीन, हिन्दू ग्रंथों के अनुसार सोम अर्थात चंद्रमा को दक्षप्रजापति ने शाप दिया था। जिससे चंद्र का, तेज घटने लगा। इस शाप से, विचलित होकर सोम ने भगवान शिव की आराधना की, तब, भोलेनाथ की कृपा से, सोम, शाप मुक्त हो गया, और यहां शिवलिंग की स्थापना की, जिसे सोमनाथ कहा गया।
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
बारह ज्योतिर्लिंगों में दूसरा ज्योतिर्लिंग माने जाने वाला मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर दक्षिण का कैलाश श्रीशैल पर्वत पर नल्ला-मल्ला नाम के घने जंगलों के बीच स्थित है। मल्लिका, अर्थात माता पार्वती और अर्जुन अर्थात भगवान शंकर को कहा जाता है। और इसे ही सम्मिलित रूप से मल्लिकार्जुन कहा जाता हैं। लगभग दो हज़ार वर्ष प्राचीन श्री मल्लिकार्जुन का पूजन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।
शिव पुराण की कथा के मुताबिक जब भगवान गणेश जी और कार्तिकेय पहले विवाह के लिए परस्पर झगड़ने लगे और कार्तिकेय नाराज़ होकर क्रौंच पर्वत पर चले गए। तब भगवान शिव उस क्रौंच पर्वत पर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गये तभी से वे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हुए।
मल्लिकार्जुन के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि, चन्द्रगुप्त राजा के राजकन्या के पास एक काली गाय थीं, जो अपना सारा दूध कंही और निकाल देती थी। राजकुमारी ने जब पता किया तो वो गाय अपना सारा दूध एक शिवलिंग पर निकालती थी। तब उस शिवलिंग के ऊपर एक खूबसूरत मंदिर बनवा दिया। जिसे आज मल्लिकार्जुन के नाम से जाना जाता है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
जिसके दर्शन मात्र से मोक्ष मिल जाये, ऐसा साक्षात शिव स्वरूप, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, स्वयं ही प्रकट हुआ है। कालो के काल महाकाल की हर सुबह भस्म आरती होता है। ये एक ऐसा भस्म आरती है, जिसमे ताजे मुर्दे के भस्म से महाकाल की श्रृंगार किया जाता है। और उज्जैन के राजा महाकाल हर सोमवार नगर की भ्रमण करता हैं। सबसे सर्वोच्च ज्योतिर्लिंग माने जाने वाला महाकाल के बारे में ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय मे यही से समय निर्धारित किया जाता था।
ॐकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मध्यप्रदेश के खंडवा में, पवित्र नर्मदा नदी के बीच, ॐ आकार के द्वीप में, स्थित ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग, जो स्वयं नर्मदा नदी से प्रकट हुआ है। ओम्कारेश्वर एक ऐसा पवित्र ज्योतिर्लिंग है, जिसमे 68 तीर्थ है, जहां 33 कोटि देवता परिवार सहित रहते है। इसके अलावा यहां 2 ज्योतिस्वरूप और 108 प्रभावशाली शिवलिंग विराजमान है।
ऐसा कहा जाता है कि राजा मान्धाता ने यहाँ नर्मदा किनारे इस पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया और शिवजी के प्रकट होने पर उनसे यहीं निवास करने का वरदान माँग लिया। तभी से भगवान शिव यंहा ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। शास्त्रों के अनुसार आप देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले लेकिन जब तक आप ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहाँ नहीं चढ़ाते, आपके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं।
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
देवो का घर कहे जाने वाले झाड़खंड स्थित देवघर में बाबा बैद्यनाथ धाम पवित्र ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हैं। एक सिद्धिपीठ होने के कारण इसे कामना लिंग भी कहते है। जब राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि, शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये और उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और रावण को इस शिवलिंग को लंका ले जाने का वरदान दिया।
लेकिन एक शर्त भी रखा कि इस शिवलिंग को ले जाते समय पृथ्वी पर कहीं नही रखना है। लेकिन ऐसा नही हुआ और बीच रास्ते मे ही शिवलिंग रखना पड़ा। और फिर दुबारा रावण उस शिवलिंग को नही उठा पाया और वंही छोड़कर चला गया। फिर ब्रह्मा, विष्णु इत्यादि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। जो आज बैधनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है। यहां सावन के महीना में बहुत विशाल मेला लगता है।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
पश्चिमी घाट के सह्याद्रि पर्वत पर भीमा नदी के उद्गम स्थल पर भगवान शिव के रूप मे पवित्र ज्योतिर्लिंग भीमाशंकर स्थित है। सभी ज्योतिर्लिंग में सबसे ज्यादा मोटा होने के कारण इसे मोटेश्वर महादेव भी कहते है। भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। इस मंदिर का 12 ज्योतिर्लिगों का नाम जापते हुए दर्शन करने से सात जन्मों के पाप दूर होते हैं और स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं।
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग का वर्णन शिवपुराण में मिलता है। शिवपुराण में कहा गया है कि पुराने समय में कुंभकर्ण का पुत्र भीम एक राक्षस था। भगवान शिव ने राक्षस तानाशाह भीम से युद्ध कर राक्षस को राख कर दिया और इस तरह अत्याचार की कहानी का अंत हुआ। भगवान शिव से सभी देवों ने आग्रह किया कि वे इसी स्थान पर शिवलिंग रूप में विराजित हो़। उनकी इस प्रार्थना को भगवान शिव ने स्वीकार किया और वे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में आज भी यहां विराजित हैं।
रामेश्वर ज्योतिर्लिंग
पवित्र चार धामो में से एक रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा हुआ एक सुंदर शंख आकार द्वीप में स्थित है। यही पर भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले पत्थरों के सेतु का निर्माण करवाया था, रामेश्वरम् का मंदिर भारतीय निर्माण-कला और शिल्पकला का एक सुंदर नमूना है। इसके प्रवेश-द्वार चालीस फीट ऊंचा है।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि जब भगवान राम माता सीता को लंका से वापिस लाने के लिए सागर पार करना था, लेकिन ये अत्यधिक कठिन कार्य था। तब श्री राम ने, युद्ध कार्य में सफलता ओर विजय के पश्र्चात कृतज्ञता हेतु उनके आराध्य भगवान शिव की आराधना के लिए समुद्र किनारे की रेत से शिवलिंग का अपने हाथों से निर्माण किया, तभी भगवान शिव स्वयं ज्योति स्वरुप प्रकट हुए ओर उन्होंने इस लिंग को श्री रामेश्वरम की उपमा दी।
श्री राम ने युुद्ध विजय पश्र्चात भी यहां रामेश्वरम् जाकर पुुुजन किया। शिवलिंग की स्थापना करने के पश्र्चात, इस लिंंग को काशी विश्वनाथ के समान मान्यता देनेे हेतु, भगवान राम ने हनुमानजी को काशी से एक शिवलिंग लाने कहा। और रामेश्वर ज्योतिलििंंग के साथ काशी के लिंंग कि भी स्थापना कर दी। छोटे आकार का यही शिवलिंग रामनाथ स्वामी भी कहलाता है। ये दोनों शिवलिंग इस तीर्थ के मुख्य मंदिर में आज भी स्थापित है।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
भगवान शिव को समर्पित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारिकापुरी से 17 मिल दूर स्थित है। नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर जिसके दर्शन मात्र से दिव्य लोक की प्राप्ति हो जाता है। ऐसे नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि भगवान् शिव का अनन्य भक्त सुप्रिय, दारुक नामक एक राक्षस बहुत क्रुद्व रहता था।
एक बार सुप्रिय नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था। उसने नौका में सवार सभी यात्रियों को कैद कर लिया। सुप्रिय कारागार में भी अपने नित्यनियम के अनुसार भगवान् शिव की पूजा-आराधना करने लगा। तो दारुक राक्षस क्रोध से सभी बंदियों को मार डालने का आदेश दे दिया। तब भगवान् शिव तत्क्षण उस कारागार में एक ऊँचे स्थान में एक चमकते हुए ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। और भगवान के दिये हुए अस्त्र से राक्षस दारुक तथा उसके सहायक का वध करके सुप्रिय शिवधाम को चला गया। भगवान् शिव के आदेशानुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा।
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
हिमालय के गोद मे बसे भारत के उत्तराखंड में महादेव स्वयं केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। केदारनाथ चार धामो के साथ साथ पंच केदार में से भी एक है। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है। पत्थरों और कत्यूरी शैली से बने इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था।
केदारनाथ के दर्शन से समस्त पापों के नाश हो जाता है और जीवन मुक्ति की प्राप्ति होता है। श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के चारों ओर विशालकाय चार स्तंभ विद्यमान है जिनको चारों वेदों का धोतक माना जाता है, जिन पर विशालकाय कमलनुमा मन्दिर की छत टिकी हुई है। ज्योतिर्लिंग के पश्चिमी ओर एक अखंड दीपक है जो कई हजारों सालों से निरंतर जलता रहता है जिसकी निरन्तर जलते रहने की जिम्मेदारी पूर्व काल से तीर्थ पुरोहितों की है।
इस ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार शृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से ही प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थना से ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुआ।
पंचकेदार कथा के अनुसार ये ज्योतिर्लिंग महाभारत से भी जुड़ा हुआ है। जिसमे भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में पशुपतिनाथ के रूप में प्रकट हुआ। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
कांशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
जिसके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाता है, ऐसा काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तरप्रदेश के वाराणसी में स्थित है। मां गंगा के तट पर स्थित हजारों किलो सोने के परत से बने बाबा विश्वनाथ का मंदिर अद्भुत, अकल्पनीय और आश्चर्य जनित है। बाबा विश्वनाथ के बारे में ऐसा कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। काशी एक ऐसा स्थान है जहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है।
कहा जाता है कि यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती का आदि स्थान है। जब देवी पार्वती अपने पिता के घर रह रही थीं। लेकिन अच्छा नही लगने पर देवी पार्वती ने एक दिन भगवना शिव से उन्हें अपने घर ले जाने के लिए कहा। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती की बात मानकर उन्हें काशी लेकर आए और यहां विश्वनाथ-ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया।
त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग
गोदावरी नदी के उद्गम स्थल ब्रह्मगिरि पर्वत के निकट महाराष्ट्र के नाशिक में त्र्यंबक गांव में भगवान त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गढ्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश – इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं।
त्रयम्बकेश्वर के बारे में ऐसा कहा जाता हैं कि प्राचीनकाल में त्र्यंबक गौतम ऋषि की तपोभूमि थी। अपने ऊपर लगे गोहत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए गौतम ऋषि ने कठोर तप कर भोलेनाथ से गंगा को यहाँ अवतरित करने का वरदान माँगा। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ। गोदावरी के उद्गम के साथ ही गौतम ऋषि के अनुनय-विनय के उपरांत शिवजी ने इस मंदिर में विराजमान होना स्वीकार कर लिया। भगवान शिव के तीन नेत्रों वाले स्वरूप में यहाँ विराजमान होने के कारण इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाता है।
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग
सादगी से परिपूर्ण 12 ज्योतिर्लिंगों में अंतिम ज्योतिर्लिंग, घुश्मेश्वर, घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में दौलताबाद से बारह मीर दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। घृणेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन लोक-परलोक दोनों के लिए अमोघ फलदाई माना जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव के अनन्य भक्त घुश्मा के बहन सुदेहा ने एक दिन घुश्मा के युवा पुत्र को रात में सोते समय मार डाला। उसके शव को ले जाकर उसने उसी तालाब में फेंक दिया जिसमें घुश्मा प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंगों को विसर्जित करती थी। लेकिन भगवान शिव उसे उसे जिंदा कर दिया और प्रकट होकर घुश्मा से वर माँगने को कहने लगे। तब घुश्मा ने हाथ जोड़कर भगवान् शिव से कहा की हे नाथ यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी उस अभागिन बहन को क्षमा कर दें।
लोक-कल्याण के लिए आप इस स्थान पर सर्वदा के लिए निवास करें। भगवान् शिव ने उसकी ये दोनों बातें स्वीकार कर लीं और ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर वह वहीं निवास करने लगे। सती शिवभक्त घुश्मा के आराध्य होने के कारण वे यहाँ घुश्मेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुए।
तो आपने देखा कैसे भगवान भोलेनाथ स्वंय ही इन 12 जगहों पर ज्योतिर्लिंग के रूप में अलग अलग रूपों में विराजमान है, और क्यों इतना प्रसिद्ध और पवित्र है।