गंगा नदी का उद्गम कैसे हुआ | The River Ganges
गंगा नदी | गंगा जी | The River Ganges
भारत के ऐसे जगह, जो सिर्फ एक स्थान ही नही, बल्कि सांस्कृतिक जीवन से सना हुआ, एक सभ्यता और रीति रिवाज है, और आज हम आपको रूबरू करवाएंगे भारत के एक ऐसे ही नदी, गंगा, जो हजारों वर्षों से निरंतर बहती आ रही है। तो चलिये देखते है भारत के जीवन रेखा कहे जाने वाले माँ गंगा के बारे में जो भारत से लेकर बांग्लादेश तक बहती है।
पवित्र गंगा जी
गंगा एक ऐसी नदी जिसमे स्नान करने मात्र से पांपो का नाश हो जाय, जिसका जल अमृत के समान हो, जिसकी सुबह शाम गंगा आरती हो, ऐसा पवित्र नदी, सिर्फ एक नदी ही नही हो सकता बल्कि एक ऐसे देवी स्वरूप मां है जो हजारों वर्षों से लोगों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण रही है।
गंगाजी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियाँ तो पायी जाती ही हैं, इसके अलावा मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाए जाते हैं। गंगा कृषि, पर्यटन, तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है। इसके साथ ही अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। गंगा तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि गंगाजल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं।
गंगा सिर्फ एक नदी ही नही, बल्कि लोगो की एक ऐसी आस्था है, जिसे माँ स्वरूप पूजा जाता है। तो आइये आप भी देखे, मां गंगा से पैदा हुई संस्कृति और सभ्यता के बारे में, उस रीति रिवाज, गीत और संगीत के बारे में जहाँ से मां गंगा बहती है और पैदा करती है।
गंगाजी का उद्गम
गंगा नदी के पृथ्वी पर आगमन के बारे में कहा जाता है कि राजा सगर के 60 हजार पुत्रों के मोक्ष के लिए गंगा जल से उनकी राख को स्पर्श कराने हेतु पहले राजा सगर, फिर अंशुमान, अंशुमान के पुत्र दिलीप इन सभी ने गंगा को प्रसन्न करने की कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुए। तब राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा। लेकिन गंगा का वेग इतना तेज था कि इसे भगवान शिव के अलावा कोई नही सम्हाल सकता था। तब भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के कमंडल से निकली गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर उनको पृथ्वी पर छोड़ा। इस प्रकार गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण हुआ और महाराजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मोक्ष की प्राप्ति हुई।
पुराणों के अनुसार भगीरथ की तपस्या से अवतरित होने के कारण स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी के नाम से जाना जाता है।
गंगा नदी का उद्गम स्थल
गंगाजी, हिमालय के गौमुख नामक स्थान पर 3140 मीटर ऊंची गंगोत्री हिमनद से निकल कर भारत और बांग्लादेश सहित 2525 किलोमीटर की एक दूरी तय कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है। गंगा अपने उद्गम स्थल से एक छोटी धारा के रूप में निकलती है। गंगा के आकार लेने में अनेक छोटी धाराओं का योगदान है, जिसमे 6 बड़ी और उनकी सहायक 5 छोटी धाराओं का भौगोलिक और सांस्कृतिक महत्त्व अबसे अधिक है।
अलकनन्दा की सहायक नदी धौली गंगा, विष्णु गंगा तथा मन्दाकिनी है। धौली गंगा का अलकनन्दा से विष्णु प्रयाग में संगम होता है। और नंद प्रयाग में अलकनंदा का नन्दाकिनी नदी से संगम होता है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनंदा का कर्ण गंगा या पिंडर नदी से संगम होता है। फिर ऋषिकेश से 139 कि॰मी॰ दूर स्थित रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मन्दाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी और अलकनंदा देव प्रयाग में, और इन्ही पाँच प्रयागों को सम्मिलित रूप से कहते है पंच प्रयाग जहां से बनती हैं “गंगा” जो 200 कि॰मी॰ का सँकरा पहाड़ी रास्ता तय कर ऋषिकेश होते हुए देवभूमि हरिद्वार के मैदानी इलाके में प्रवेश करती हैं।
गंगा नदी का मैदानी क्षेत्र
हरिद्वार अर्थात “ईश्वर का द्वार” जहां गंगा किनारे दुनिया के सबसे बड़ा मेला महाकुंभ का आयोजन होता है। यहां गंगा मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। और इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ के नाम से भी जाना जाता है। हरिद्वार के सबसे लोकप्रिय दर्शनीय स्थल गंगा की धारा ही है। ‘हर की पैड़ी’ जिसके पास, गंगा की धारा, कृत्रिम रूप से मुख्यधारा से निकाली गयी है और उस धारा से एक और छोटी धारा निकालकर ब्रह्म कुंड में लेजाया गया है। गंगा की वास्तविक मुख्यधारा नील पर्वत के पास से बहती है। और इसी पहाड़ के कारण गंगा को यहां नील धारा कहते हैं। नीलधारा में स्नान करके पर्वत पर नीलेश्वर महादेव के दर्शन करने का बड़ा माहात्म्य है।
हरिद्वार से लगभग 800 कि॰मी॰ मैदानी यात्रा करते हुए मां गंगा हिमालय के मैदान में बसे महात्मा विदुर की कर्मभूमि बिजनौर, गढ़वाल राजाओं की राजधानी गढ़मुक्तेश्वर, उत्तर भारत का प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक ऊखल तीर्थ स्थल सोरों, पांचाल देश फर्रुखाबाद, हिंदू साम्राज्य की राजधानी प्राचीन नगरी कन्नौज, पौराणिक ग्रंथ रामायण की रचना स्थल, ब्रह्मा की तपस्या स्थल, महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि बिठूर, और भारतीय राज्य उत्तरप्रदेश के औद्योगिक नगरी कानपुर होते हुए गंगा प्रयाग पहुँचती है।
संगम स्थल प्रयाग
दुनिया के सबसे पवित्र संगम स्थल प्रयाग, जहां यमुना और सरस्वती नदी मां गंगा में समा जाती है। ये संगम स्थल हिंदुओं का एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। जिसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। और यही वो पवित्र स्थल है जहां दुनिया का सबसे बड़ा, विशाल कुंभ मेला का आयोजन हर 12 वर्ष में होता है। प्रयागराज को सांस्कृतिक रीति रिवाजों से बांध कर गंगाजी कई छोटे बड़े कस्बो और नगरों की प्यास बुझाती हुई हिंदू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी पहुंचती है।
यहीं गंगाजी के पवित्र तट पर बाबा विश्वनाथ विराजमान है। जहाँ हर रोज माँ गंगा की गंगा आरती होता है। काशी में गंगाजी उत्तर की तरफ थोड़ा घूम जाती है। और यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। काशी में गंगा जी बाबा विश्वनाथ से विदा लेकर, वक्र लेते हुए यहां से आगे बढ़ती हुई मीरजापुर, गाज़ीपुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच गंगाजी में बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गण्डक, सरयू, कोसी आदि मिल जाती हैं।
गंगा जी के अलग अलग रूप
भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से गंगाजी दक्षिण की ओर घूम जाती है। और भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल पहुंच जाती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास ही गंगाजी भागीरथी और पद्मा के रूप में दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। और यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। भागीरथी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है और पद्मा दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई 1974 में निर्मित फरक्का बैराज से छनते हुई बंग्लादेश में प्रवेश करती है।
मुर्शिदाबाद से गंगाजी आगे बढ़ते हुए हुगली पहुँच जाती है। और इसी के तट पर स्थित है कोलकाता बन्दरगाह। मुर्शिदाबाद से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी तथा हुगली शहर से समुद्र में समा जाने तक गंगाजी को हुगली के नाम से जाना जाता है।
गंगाजी हुगली नदी रूप में कोलकाता, हावड़ा होते हुए सुंदरवन के भारतीय भाग और पद्मा ब्रह्मपुत्र से निकली शाखा जमुना नदी और मेघना नदी के साथ 2525 किलोमीटर की लंबी दूरी तय कर अंततः विश्व का सबसे बड़ा 350 कि॰मी॰ चौड़े सुंदरवन डेल्टा में जाकर बंगाल की खाड़ी में सागर में समा जाती है।
गंगा द्वारा निर्मित विश्व का सबसे विशाल डेल्टा
विश्व का यह विशाल डेल्टा गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गयी नवीन जलोढ़ से हजारों वर्षों में निर्मित समतल तथा निम्न मैदान है। जहां गंगा और बंगाल की खाड़ी के संगम पर एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थ स्थल गंगा-सागर हैं। यहां हर वर्ष एक विशाल गंगा सागर मेला आयोजन होता है। इसके साथ ही सुन्दरवन डेल्टा बहुत-सी प्रसिद्ध वनस्पतियों और प्रसिद्ध बंगाल टाईगर का निवास स्थान है। यह डेल्टा धीरे-धीरे सागर की ओर बढ़ रहा है।
सुंदरवन डेल्टा में भूमि का ढाल अत्यंत कम होने के कारण यहाँ गंगाजी अत्यंत धीमी गति से बहती है और अपने साथ लायी गयी मिट्टी को मुहाने पर जमा कर देती है, जिससे डेल्टा का आकार बढ़ता जाता है और नदी की कई धाराएँ तथा उपधाराएँ बन जाती हैं। और गंगा जालंगी नदी, इच्छामती नदी, भैरव नदी, विद्याधरी नदी और कालिन्दी नदी के रूप में बहती हैं। इन नदियों के वक्र गति से बहने के कारण दक्षिणी भाग में कई धनुषाकार झीलें बन गई हैं। यहाँ ढाल उत्तर से दक्षिण है, इसलिए अधिकांश नदियाँ उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। और समुद्र में विलीन हो जाता है।
तो ये था गंगाजी, जो सिर्फ एक बहते हुए नदी ही नही बल्कि बहते हुए संस्कृति और सभ्यताओं को जन्म देने वाली मां हैं। जो वर्षो से हमारे सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक जीवन मे महत्वपूर्ण योगदान देती आ रही है।
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